अहंकार का नाश, भक्ति का सम्मान: शनिदेव और हनुमान जी की कहानी सिखाती है विनम्रता का पाठ

हनुमान जी और शनिदेव की मित्रता की कहानी बहुत ही रोचक और प्रसिद्ध है। इस कथा के कई अलग-अलग संस्करण प्रचलित हैं, लेकिन सबसे लोकप्रिय कहानी रामायण काल से जुड़ी हुई है।
शनिदेव को रावण की कैद से मुक्ति
कथा के अनुसार, जब भगवान राम और रावण के बीच युद्ध चल रहा था, तब शनिदेव की दृष्टि रावण पर पड़ी। रावण ने अपनी शक्तियों के अहंकार में, सभी नवग्रहों को अपने दरबार में उल्टा टाँग रखा था ताकि उनका बुरा प्रभाव उस पर न पड़े। जब हनुमान जी माता सीता की खोज में लंका पहुँचे और लंका दहन किया, तब उन्होंने रावण के महल में कैद सभी ग्रहों को भी देखा।
हनुमान जी ने जब शनिदेव को उल्टा लटका हुआ देखा, तो उन्हें बहुत दया आई। उन्होंने शनिदेव से उनका परिचय पूछा। शनिदेव ने बताया कि वे रावण की कैद में हैं। हनुमान जी ने उन्हें मुक्त करने का आश्वासन दिया। जैसे ही लंका जलने लगी, हनुमान जी ने शनिदेव को रावण के बंधन से आज़ाद कर दिया।
हनुमान जी के प्रति शनिदेव का आभार
रावण के बंधन से मुक्त होने के बाद, शनिदेव ने हनुमान जी का आभार व्यक्त किया। उन्होंने हनुमान जी से कहा कि वे उनकी इस कृपा का प्रतिफल देना चाहते हैं। हनुमान जी ने विनम्रतापूर्वक कहा कि उन्हें कोई प्रतिफल नहीं चाहिए।
तब शनिदेव ने कहा, “हे पवनपुत्र, आपने मुझे रावण के कारावास से मुक्ति दिलाई है। इसलिए मैं आपको वचन देता हूँ कि जो भी व्यक्ति आपकी सच्चे मन से पूजा करेगा, उसे मेरी साढ़ेसाती, ढैया या किसी भी प्रकार के बुरे प्रभाव का सामना नहीं करना पड़ेगा।”
बना अटूट मित्रता का बंधन
हनुमान जी ने शनिदेव के इस वचन को स्वीकार किया। माना जाता है कि तभी से हनुमान जी की पूजा करने वालों पर शनिदेव की बुरी दृष्टि नहीं पड़ती। यही कारण है कि जब किसी व्यक्ति पर शनि की साढ़ेसाती या ढैया का प्रभाव होता है, तो उसे हनुमान जी की पूजा और हनुमान चालीसा का पाठ करने की सलाह दी जाती है।
यह कथा हमें यह भी सिखाती है कि अहंकार से भरा व्यक्ति कितना भी शक्तिशाली क्यों न हो, एक दिन उसका पतन निश्चित है। वहीं, हनुमान जी की भक्ति, विनम्रता और निस्वार्थ सेवा ने उन्हें सभी देवताओं और ग्रहों का प्रिय बना दिया।