उत्तराखंडधर्म-संस्कृति

उत्तराखंड में दही हांडी का उत्साह, युवाओं ने लिया बढ़-चढ़कर हिस्सा

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देहरादून: देशभर की तरह उत्तराखंड में भी भगवान श्रीकृष्ण का 5252वां जन्मोत्सव बड़े ही धूमधाम और श्रद्धा के साथ मनाया जा रहा है। जन्माष्टमी के अवसर पर मंदिरों में विशेष पूजा-अर्चना और घरों में अनुष्ठान किए जा रहे हैं।

शुभ मुहूर्त और पूजा विधि

इस वर्ष, जन्माष्टमी का पर्व उदयातिथि के अनुसार 16 अगस्त को मनाया जा रहा है। अष्टमी तिथि का प्रारंभ 15 अगस्त की रात 11 बजकर 49 मिनट पर हुआ और इसका समापन 16 अगस्त की रात 9 बजकर 34 मिनट पर होगा। भगवान श्रीकृष्ण का जन्म मध्यरात्रि को हुआ था, इसलिए निशिता पूजा मुहूर्त का विशेष महत्व है। इस साल निशिता पूजा का शुभ मुहूर्त 16 अगस्त को देर रात 12 बजकर 04 मिनट से 12 बजकर 47 मिनट तक रहेगा।

भक्तों ने इस दिन सुबह से ही व्रत का संकल्प लिया और पूरे दिन उपवास रखा। मध्यरात्रि में, भगवान श्रीकृष्ण की बाल स्वरूप प्रतिमा को पंचामृत (दूध, दही, घी, शहद, गंगाजल) से अभिषेक कराया गया, उन्हें नए वस्त्र पहनाए गए और पालने में झुलाया गया। इसके बाद, उन्हें 56 भोग अर्पित किए गए और आरती की गई।

शुभ योगों का संयोग

इस बार जन्माष्टमी पर कई दुर्लभ और शुभ योग बन रहे हैं, जैसे वृद्धि योग, सर्वार्थ सिद्धि योग और अमृत सिद्धि योग। ज्योतिषीय गणनाओं के अनुसार, 190 साल बाद राजराजेश्वर योग का भी निर्माण हो रहा है, जो इस पर्व को और भी खास बना रहा है। माना जाता है कि इन शुभ योगों में की गई पूजा और व्रत से भक्तों को विशेष फल की प्राप्ति होती है।

मंदिरों में विशेष आयोजन

उत्तराखंड के सभी प्रमुख कृष्ण मंदिरों में जन्माष्टमी के अवसर पर विशेष आयोजन किए गए हैं। देहरादून में श्री कृष्ण प्रणामी मंदिर, हरिद्वार में कृष्ण मंदिर और अन्य स्थानों पर भक्तों की भारी भीड़ देखने को मिली। मथुरा और वृंदावन की तरह, उत्तराखंड के कई हिस्सों में भी दही हांडी का उत्सव मनाया गया, जिसमें युवाओं ने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया।

इस दिन भक्तों ने भगवान श्रीकृष्ण के जीवन पर आधारित झांकियां भी सजाईं और भजन-कीर्तन का आयोजन किया। यह पर्व न केवल भगवान कृष्ण के जन्मोत्सव का प्रतीक है, बल्कि धर्म, भक्ति और प्रेम के संदेश का भी प्रसार करता है।

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