उत्तराखंड

उत्तराखंड में मानव-हाथी संघर्ष बढ़ा: जानें, क्यों आबादी वाले क्षेत्रों में घुस रहे हैं जंगली हाथी

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देहरादून/हरिद्वार/हल्द्वानी: उत्तराखंड के कई हिस्सों में, खासकर देहरादून, हरिद्वार और हल्द्वानी के आसपास के इलाकों में जंगली हाथियों का आतंक लगातार बढ़ रहा है। आबादी वाले क्षेत्रों में हाथियों के झुंड के घुसने से स्थानीय लोगों में दहशत और हड़कंप का माहौल है। इन घटनाओं से जान-माल का नुकसान हो रहा है, जिससे वन विभाग और प्रशासन के सामने एक बड़ी चुनौती खड़ी हो गई है। हरिद्वार में आतंक: हरिद्वार के बहादराबाद, जगदीशपुर और आसपास के क्षेत्रों में हाथियों का उत्पात देखा जा रहा है। हाल ही में, हाथियों का एक झुंड रिहायशी इलाकों में घुस गया, जिससे लोगों में डर फैल गया। देहरादून में हमले: देहरादून-हरिद्वार नेशनल हाईवे पर स्थित लच्छीवाला टोल प्लाजा पर एक हाथी के हमले का वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हुआ है। हाथी ने एक कार को नुकसान पहुंचाया, जिससे यात्रियों में दहशत फैल गई। इससे पहले, कांवड़ यात्रा के दौरान भी हाथी ने सड़क पर एक ट्रैक्टर-ट्रॉली को पलट दिया था और एक भंडारे में घुसकर हड़कंप मचा दिया था। ऋषिकेश में दुखद घटना: ऋषिकेश के जौलीग्रांट क्षेत्र में एक दुखद घटना में, जंगल में चारा पत्ती लेने गए एक बुजुर्ग दंपत्ति पर हाथी ने हमला कर दिया, जिससे उनकी मृत्यु हो गई। इस घटना ने पूरे इलाके में शोक की लहर फैला दी है। हल्द्वानी में सुरक्षा की मांग: हल्द्वानी के चोरगलिया क्षेत्र में भी वन्यजीवों का आतंक बढ़ गया है। ग्रामीणों की फसलों को भारी नुकसान पहुंचा है और वे लगातार वन विभाग से सुरक्षा की मांग कर रहे हैं। वन विभाग के प्रयास: वन विभाग और स्थानीय प्रशासन स्थिति को नियंत्रित करने के लिए लगातार प्रयास कर रहे हैं। कई जगहों पर हाथियों को वापस जंगल में खदेड़ने के लिए टीमें लगाई गई हैं। वन विभाग ने प्रभावित क्षेत्रों में लोगों को रात के समय घरों से बाहर न निकलने की सलाह दी है। हल्द्वानी के चोरगलिया क्षेत्र में हाथियों के आतंक से निपटने के लिए वन विभाग ने 1500 मीटर की सोलर फेंसिंग और 100 मीटर की हाथी सुरक्षा दीवार बनाने की योजना तैयार की है। मानव-हाथी संघर्ष को रोकने के लिए, वन विभाग और WWF जैसी संस्थाएं हाथी कॉरिडोर का सर्वे कर रही हैं ताकि हाथियों के पुराने रास्तों को फिर से स्थापित किया जा सके। यह समस्या मुख्य रूप से शहरीकरण और वन क्षेत्रों में मानवीय अतिक्रमण के कारण उत्पन्न हुई है, जिससे जंगली जानवर अपने प्राकृतिक आवास से बाहर निकलकर आबादी वाले क्षेत्रों में आ रहे हैं। प्रशासन और वन्यजीव विशेषज्ञों का मानना है कि इस समस्या का दीर्घकालिक समाधान मानव-वन्यजीव संघर्ष को कम करने के लिए प्रभावी उपाय और जागरूकता अभियान चलाना है।

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